जिसे मैं कभी समझ नहीं पाई
भागती रही हूँ इससे हमेशा
कभी बैर के पेड़ से टकराकर ख़याल हो गई हूँ
कभी कीचड़ में गिरकर मैली हो गई हूँ
जाने कौन सी हिम्मत चाहिए
इस दर्द से गुजरने के लिए
मैं तो हमेशा भागती ही आई हूँ
हज़ारों कोशिशे की हैं मैंने
इसे अपने अंदर से मिटाने की
इसके अस्तित्व को भूल जाने की
पर ये भी जिद्दी ठहरा
टस से मस नहीं हुआ
चल,
जब तुझे मेरा साथ छोड़ना ही नहीं है
तो दोस्त बन जाते हैं
मैं भागना छोड़ देती हूँ
तू पीछा करना छोड़ दे
ज़िन्दगी का सफर साथ में तय कर लेते हैं
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