Friday, May 6, 2011

मौत

रह गई दुनियादारी पीछे
छूट गए धर्म-जात के जंजाल
अब मिट जाने की कोई परवाह नहीं
बर्बाद हो जाने का कोई डर नहीं

मौत तो आनी है देर सवेर
देख लुंगी जब दस्तक देगी
अभी गूँज जाने दो हंसी ज़रा-सी
पता चलने दो आसमान को,
मैं भी रहती हूँ इस धरती पर कहीं

आने दो परेशानियों का बबंडर
ज़िन्दगी भर तो वो रहनी है नहीं
जब बदलेगा मौसम वो चली जायेंगी
मुझे उनसे इतनी हम दर्दी रखनी क्यों?

नाच के मजे लूट लेती हूँ तूफानी रातों में
पता चलने दो अँधेरी रातों को भी
मेरा दिया कभी बुझता नहीं

जिसे आना है वो आये, जिसे जाना है वो जाये
बहुत दिया है मेरे महबूब ने
किसी के दगा या दर्द देने से
मेरा प्यार कम हो जाना नहीं

वो है मेरे साथ वो है मेरे पास
मुझे पता है मुझे जाना है कहाँ
अब छोटी-मोटी बातों में उलझना क्या?

जिसे सिसकना है ज़िन्दगी में वो सिसके
जिसे तूफानों का खौफ़ है वो मर-मर के जिए
मैंने तो मौत से ही दोस्ती कर ली है
अब ज़िन्दगी के उतार-चड़ाव से घबराना क्या?

No comments:

Post a Comment