मेरी मंजिल है सबसे ऊँची चोटी
पर मैं चट्टानों पर चढ़ जाती हूँ
वो चोट कर मेरे हाथों पर,
मुझे धकेल तो देता है
पर गिरने से पहले गोद में उठा लेता है
क्या करे वो,
अपनी मोहब्बत से मजबूर होता है
मैं समझ पथर को हीरा,
अपनी जान की बाजी लगा देती हूँ
वो पथर को छीन फेंक देता है
पर जान बचाने की खातिर मेरी
हर बचे पथर को हीरा बना देता है
क्या करे वो,
अपनी मोहब्बत से मजबूर होता है
हर मुराद मेरी ,
वो मांगने से पहले पूरी कर देता है
जब कभी मुझे दर्द में देखता है
मेरे साथ रात भर जागता है
पर मुझे गुजरना पड़ेगा इस आग से,
उस तक पहुँचने के लिए
यहीं पैगाम वो हर बार देकर जाता है
क्या करे वो,
अपनी मोहब्बत से मजबूर होता है
कैसे करू शुक्रिया उसका ,
उसकी इस मोहब्बत के लिए
मैं नादान नासमझ इंसान हूँ
शुक्रिया भी मुझे करना आता नहीं
पर वो खुदा है, मुझे खुदा बनाकर ही रहेगा
क्या करे वो,
अपनी मोहब्बत से मजबूर होता है
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