मन मेरे ...
क्यों है तू बाबरा ,
जो मिलता है वो तुझे नहीं भाता
जो नहीं मिलता,
उसे पाना मकसद जो जाता तेरा !
ये भी कोई बात है भला,
तू रहे हमेशा सब पाकर भी प्यासा !
करू कितने भी जतन ,
तेरा प्याला खाली ही रह जाता !
हद है दोस्त तेरी,
नींद में भी तू भटकता रहता है
सपनों में,
कभी अतीत को कुरेदता है
कभी भविष्य के सपने बुनता है
क्या करू तेरा , तू ही बता दे !
न दोस्ती भली तुझसे,
न दुश्मनी से कुछ हासिल !
कोई बीच का मार्ग हो, तो समझा दे !
सच ये है ,
तू मुझसे, मैं तुझसे जुदा हो नहीं सकते!
तो ऐसा करते हैं ,
ज़रा-सा फासला दरमियां बना लेते हैं
मैं दूर से तुझे निहारती रहूँ !
न तेरी कुछ सुनु, न अपनी कुछ कहू ,
बता बाबरे मन कैसी रहेगी !
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another good one !!
ReplyDeleteand dis is so true!
जो मिलता है वो तुझे नहीं भरता
जो नहीं मिलता,
उसे पाना मकसद जो जाता तेरा !
सब मन का ही खेल है :-)
ReplyDeleteLove..