क्यों दूसरों ने मुझे इतना दर्द दिया
न दिया होता,
तो शायद ज़िन्दगी और हसीन होती !
पर देखते देखते,
उस मकाम पर मैं आ पहुंची
जहाँ कोई दूसरा नज़र ही नहीं आता !
वो तो मेरा ही अँधेरा था
मैंने अपनी इच्छाओं और सपनों के बुत बना रखे थे
कभी उनसे दोस्ती कर ली
कभी उनसे शिकायत कर ली
अब सोचती हूँ,
वहां तो कोई भी न था मेरे सिवा
किसे मैं माफ़ करूं
किस्से में कोई शिकवा रखूँ
मैं ही अब वो मैं न रही
इन बातों का किस्से चर्चा करूं !
No comments:
Post a Comment