Thursday, April 4, 2013
जिददी मन
मन को किसी न किसी काम में,
उलझे रहने की आदत है !
ज़िन्दगी ख़त्म हो जाती है ,
पर ये काम ख़त्म नहीं होते!
अपनी ज़िन्दगी की उलझने कम हो तो,
कभी पड़ोसी की,कभी देश की,
कभी इस दुनिया की, कभी दूसरी दुनिया!
जो भी हाथ लग जाए,
उसे लेकर परेशान हो जाता है!
पर कभी भी ये जिददी मन,
स्वीकार नहीं करता !
ना कोई उलझन है !
ना कोई परेशानी है !
Mind has a habit,
To remain occupied in some work
Life gets over
But list of work never ends
If problems of own life are less,
Sometimes it takes problems of neighbor,
Sometimes problems of country,
Sometimes problems of earth,
And sometimes problems of heaven!
But never this stubborn mind,
Accepts the truth,
There are no problems !
There is nothing to achieve here!
This poetry is dedicated to my lovely never ending chattering mind:-)
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आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (२८ अप्रैल, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - इंडियन होम रूल मूवमेंट पर स्थान दिया है | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteman to bas man ki hi sunta hai
ReplyDeleteShukriya Tushaar ji :-)
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