Monday, August 1, 2011

चेहरें...

रोज गुज़रते हैं
चेहरें हज़ार नज़रों के सामने से

कुछ मुस्कुराते हुए, कुछ सर झुकाते हुए
कुछ की आँखों में रोशनी के दिए
कुछ सबसे नाराज से
कुछ नई ज़िन्दगी का स्वागत करतें
कुछ अर्थी को कन्धा देतें

रोज गुज़रते हैं
चेहरें हज़ार नज़रों के सामने से

हर चेहरे में बसा है एक संसार
उसकी अपनी भाषा ,अपना भगवान्
चुप हैं फिर भी कुछ कहते से चेहरे
अपने अपने ख्वाबों को सच करने में लगे हुए चहरे
जाने कहाँ पहुचेंगे ये चेहरे

रोज गुज़रते हैं
चेहरें हज़ार नज़रों के सामने से

(I feel its incomplete ... but if I add anything to it, it will loose the meaning.)

4 comments:

  1. बहुत गहन अभिव्यक्ति ...

    आपने तथागत पर टिप्पणी छोड़ी है मेरे ब्लॉग पर .. आपकी बात अक्षरश: सही है ... बुद्ध कि संवेदनशीलता का भी बहुत अच्छे से ज़िक्र है ... यशोधरा उनकी पहली शिष्य बनी यह भी मालूम है ..उनके हृदय को मैंने अपनी नज़र से पढने का प्रयास किया है .. बुद्ध से मात्र प्रश्न हैं ..आरोप नहीं .. आपकी प्रतिक्रिया ने एक नयी दिशा दी है ..आभार

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  2. हर चेहरे पर अपने-अपने भाव अपनी-अपनी उलझने और अपने-अपने इरादे हैं।

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  3. But destination is same for all and that's the real truth :-)

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  4. गुजारते तो है कई चहरे पर अक्सर वो जूठे सच्चे चेहरे दोखा ही देते हैं ... आपने मन के भाव अच्छे से पिरोय्र हैं

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