अच्छा हुआ जो आपने,
ज़िन्दगी का हिसाब-किताब समझा दिया !
न रहा कोई खाता खुला,
क्या आपने हिसाब रखना सिखा दिया!
बहुत दिन के बाद,
जब पढ़ी ज़िन्दगी की किताब,
न लगी वो मेरी कहानी ,
क्या आपने पढ़ना सिखा दिया !
भूल कर भी न भूल पाऊँ खुद को,
क्या आपने याद रखना सिखा दिया
No comments:
Post a Comment