Thursday, February 3, 2011

जीवन

होने और करने में
थोड़ा सा अंतर है
जो समझले इस अंतर को
वो जीवन के झमेलों से मुक्त है

क्या मेरे बस में है
क्या मुझसे परे है
जो परे है वो बस परे है
उसे छीनाझपटी से पाना असंभव है
जिसके पल्ले इतनी सी बात पड़ गई
वो जीवन ऐसे जीता है
जैसे नदी में पत्ता बहता है

जो कुछ भी आनंद का स्रोत है
वो ऊपर से अवतरित होता है
जबतक होता है बस होता है
जब जाना होता है चला जाता है
कोई तारीख बताकर नहीं जाता है

पीड़ा का
स्रोत भी वही है जो आनंद का है
इंसान असमर्थ है
न वो असीम आनंद पैदा कर सकता है
न वो अनंत पीड़ा को ही जन्म दे पायगा

जो आनंद को कसने का प्रयास न करे
पीड़ा को देखकर भागता न हो
बस अपनी झोली फैलकर रख ले
जो मिल जाय उसे माथे से लगा ले

आनंद में नृत्य का रस पीले
पीड़ा में अश्रुओं का जाम ले ले
जो इस कला में पारंगत हो गया
उसके जीवन के सारे अँधेरे मिट गए

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