लगाने दो पंख मुझे
अपनी कल्पनाओं के
उड़ने दो कहीं
क्या अच्छा क्या बुरा
मुझे नहीं पता
आकाश सा लहराने दो
सागर सा विस्तार पाने दो
क्या झूठ क्या सच
मुझे नहीं पता
अमृत है ये या ज़हर
इसका फैसला बाद में होगा
अभी जो सामने है उसे पीने दो
कोई मेरे साथ आयेगा या नहीं
ये उसकी मर्जी है
मुझे मेरे पथ पर बड़ने दो
बांधों मत किसी बंधन में
उड़ जाने दो कल्पनाओं के साथ कहीं
मत समझाओं मर्यादा का सबक
रखो सारा ज्ञान अपने पास
मुझे नहीं जानना मेरी मंजिल कहाँ है
पर जो विस्तृत धरातल है मेरे सामने
उस पर दौड़ जाने दो मुझे
स्वर्ग नरक तुम्हें मुबारक
उनके नाम लेकर,
मेरी कल्पनाओं की पतंग मत काटा करो
मैं नहीं उतर पाऊंगी खरी
तुम्हारी आशाओं की कसौटी पर
बार बार कटघरे में खड़ा मत किया करो
सुना करो कभी मेरी भी आवाज
अपनी आवाज इतनी ऊँची मत किया करो
तुमने क्या पाया है
इस पथ पर चलकर
जो मुझसे इस पथ पर
चलने का आग्रह करते हो
जाने दो मुझे जहाँ जाना है
क्यों पाप पुन्य को बीच में घसीटते हो
मुझमें भी प्राण है
मुझपर अपने विचारों को लादकर
वस्तु में परिवर्तित करने का प्रयास मत किया करो
कितनी बड़ी कीमत लगाते हो
इस समाज में बसर करने की
अत्मा तक तुम्हारी गुलाम रहे
ऐसी शर्ते मत लगाया करो
नहीं मानती मैं किसी शर्त को
मुझे अपनी कल्पनाओं की उड़ान भरने दो
होने दो अपने पैरों पर खड़ा
मुझे अपंग बनाने का प्रयास मत किया करो
रखों अपनी तिजोरी को अपने पास
ये जलवे मुझे दिखाया मत करो
शुभचिंतक हो या दुश्मन
सोच समझकर पिटारा खोला करो
क्यों ज़िद पर अड़े हो
तुम्हारे जैसी बनकर जियूं
मुझे खुली हवा में अंगडाई लेने दो
उड़ जाने दो कल्पनाओं के साथ कहीं
अब गिर पडूँ या फिसल पडूँ
इसका जिक्र तुम मत करो
क्यों समंदर की गहराई दिखाते हो
इसमें तैरना सिखा दिया करो
क्यों आंधियों से डराते हो
टूटे घरोंदा को बनाना सिखा दिया करो
क्यों मौत की दहशत जगाते हो
इससे पार जाने का मार्ग बता दिया करो
कुछ नहीं कर सकते तो ठीक है
कम से कम पथ में ,
रोड़े लाकर तो मत डाला करो
डूब जाने दो जहाँ से निकला न जा सके
पर किनारे पे खड़ा होने के लिए मत कहा करो
मुझे अपने पाप पुन्य का हिसाब करने दो
तुम क्यों अपने ग्रन्थ खोल
मेरे कर्मो का जोड़ भाग करते हो
मैंने तो कभी नहीं कहा तुमसे कुछ
तुम क्यों मेरे करने में अड़चन डालते हो
उड़ जाने दो कल्पनाओं के साथ कहीं
मुझसे मेरा पता मत पूछा करो
मुझसे मेरा पता मत पूछा करो
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