हम खुदा की नहीं
खुदा के बन्दों की इबादत करते हैं
हर गली-कूंचे से मुस्कुराकर गुजरते हैं
लोग मस्जिद मज़ार पर सर झुकाते होगे
हम हर किसीको को सलाम करते चलते हैं
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खुदा भी मेरा खुदाई भी मेरी
क्यों मुझे गरक होने का खौफ़ हो
गरक होकर भी मैं रहुगी उसीकी
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शुक्र है मिल गई निजात मुझे इश्क से
नहीं तो न जाने कितनी बार
दफ़न होना पड़ता मरना से पहले
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अब तो उम्र गुजरेगी तेरे इंतज़ार में सारी
पर तू ग़म न कर, ये मेरे सनम
ये गुन्हा नहीं तेरा,मौहब्बत है हमारी
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सुनते हैं इश्क छीन लेता है चैन सकून
देखतें हैं कितनी रातें जागकर हम गुजारेंएगे
खुद को इस आग में जलाकर
इंतिहा क्या है इसकी अजमाकर हम भी देखेगे!
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मेरे मेहरबान, खुदा के लिए
मुझसे कोई वादा न मांग
क्यों वादा करवाकर मुझसे
मेरी मुहब्बत पर शक करता है
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अगर मिल गया तू मुझे , तो खुदा की जरूरत न रहेगी
बेवफा निकल जाना सनम, यही तेरी मुहब्बत होगी
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खुदा रहमत है तेरी, बरना क्या औकात है मेरी !
मिट कर मिट्टी बन गई होती, सलामत हूँ दुआ है तेरी !
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बस तू ही तू है, और जहाँ में रखा है क्या !
तू मिले तो सकूं आये, बाकी सबसे मेरा वास्ता है क्या !
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मुझसे मत पूछों दोस्तों खुदा का पता, मैं तुम्हें समझा नहीं पाऊगी !
जब भी मैंने आईने देखा उसे देखा, जब भी किसी आँख में झाँका बस उसे ही देखा !
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मेरा न होना ही सुन्दर है, मेरे होने से सब बिगड़ जाता है !
काश मैं ऐसे जियू, की मेरा होना भी न होना सा ही रहे !
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सारे ज़ख्म भर गए रूह और जिस्म के,
तूने जो नज़र भर के देख लिया !
अब रहा नहीं कुछ से मांगने के लिए,
तेरी चाहत ने हर दुआ को मुकमल कर दिया !
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गम के साथ जीने की आदत हो गई है,
ख़ुशी से दिल सहम जाता है !
मुहब्बत में बेवफाई की आदत हो गई है,
तेरी बफाओं से डर लगता है !
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शुक्र है मिल गई इज़ात मुझे इश्क से
ReplyDeleteनहीं तो न जाने कितनी बार
दफ़न होना पड़ता मरना से पहले
nice one
मेरे मेहरबान, खुदा के लिए
ReplyDeleteमुझसे कोई वादा न मांग
क्यों वादा करवाकर मुझसे
मेरी मुहब्बत पर शक करता है
wah wah ..
I used wrong word 'इज़ात' instead of 'निजात' :-(.
ReplyDeleteहोंसला अफजाई के लिए शुक्रिया Faiz साहब..:-)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteliked this one spclly ..so much ..
ReplyDeleteशुक्र है मिल गई निजात मुझे इश्क से
नहीं तो न जाने कितनी बार
दफ़न होना पड़ता मरना से पहले