ये क्या खालीपन है
जो कभी नहीं भरता
ये कैसा अधूरापन है
जो कभी पूरा नहीं होता
इतने सारे रिश्ते नाते है
सब आने जाने है
कितने बंधन बांधे हैं
सब टूट जाने हैं
अंधापन ही अच्छा था
खोखली बस्तुयों का पीछा करते रहो
रोशनी नंगा कर देती है
खोखलापन साफ़ नज़र आता है
अगर दिखाई देता है मुझे
कुछ नहीं मिलने वाला ख़ाक के सिवा
फिर कैसे कदम आगे बढ़ जाए मेरे
डर तो मुझे भी है फिसलने का
हो सकता है ज़माने जीत जाए
मैं हार जाऊ,
पर तसल्ली तो रहेगी
अपने दिल की राह पर चली
चाहे चालू इस राह,
चाहे जाऊँ उस राह
मुश्किलें तो बराबर ही आयेगी
एक राह पर लोगो की भीड़ है
दूसरी थोड़ी सुनसान है
न पति, न प्रेमी , खालीपन भर पायेगा
न दुनियादारी के झमेले, पूरापन ला पायेगे
फिर क्यों फ़िक्र रहे राह चुनने की
जहाँ दिल आया बस उठाकर झोला चल दिए
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