छुपा ले अपने दमन में कहीं मुझे
ये इश्क मेरे बस की बात नहीं
खुद का दर्द तो सह लेते हैं किसी तरह
पर उन्हें दर्द में देखा जाता नहीं
न उनके साथ रह सकते हैं ,
न उनके बिना गुज़ारा होता है
ये इश्क की क्या मजबूरी है
जहाँ कोई साहिल नहीं मिलता है
कोई दावा होती अगर इश्क तेरी
तो मैं वैद बनकर खोज कर लेती
हर अश्क जो मेरे महबूब की आँखों से गिरता
अपनी हथेली में बटोर लेती
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