Tuesday, August 21, 2012

मुसाफिर

इक दिन छोड़ के जाना है,
ये दुनिया का मेला !
काहे तूने समझ लिया मुसाफिर,
यहाँ घर है तेरा !

उदास होता है, घबराता है,
जब बदलता है इक शहर से दूसरा शहर !
कैसे मुस्कुराकर छोड़ेगा,
जाहाँ सारा मुसाफिर !

रोता है दुआएँ मांगता है
जब हलका सा दर्द हो तेरे अपनों को,
तो बता, किस तरहे से बिदाई देकर जायेगा,
अपने ज़िगर के टुकड़ों को मुसाफिर!

Thursday, August 16, 2012

तनहा

मेरी आँखों में, जाने कैसी बिमारी है !
हर राह चलते इंसान की बुराई,
साफ़ नज़र आती है !

काश ...
मुझे फुरसत होती,
अपनी आँखों के आईने में !
खुद को देखने की,
तो मैं इतनी तनहा न होती !