किस बात का इतना घमण्ड है तुझे
जो इतनी अकड़ में तू रहता है
अपनी इस सूरत पर
जो खैरात में मिली तुझे
किसी को काली मिली
किसी को गोरी मिली
कोई नाटा रह गया
कोई लम्बा निकल गया
किसी की आंखें सुन्दर
किसी की नाक सुन्दर
पर तूने तो इसे नहीं बनाया
खैरात में मिली चीज पर
तू इस कदर क्यों इतराता है
कुछ तो लिहाज किया कर
अरे बन्दे !!!
सच क्या है जाना कर
कभी तो अपने अन्दर झाँका कर
किस बात का इतना घमण्ड है तुझे
जो इतनी अकड़ में तू रहता है
अपने मज़हब पर
इसे तूने इबादत से नहीं कमाया
तू पैदा हुआ जैन घर
पर तू महावीर नहीं बन पाया
तू पैदा हुआ मुस्लिम घर
पर तू मुहम्मद नहीं बन पाया
महावीर, मुहम्मद से लिया ज्ञान उधार
उधारी के ज्ञान पर इतनी शान
कि तैयार हो जाता है तू
लेने किसी और की जान
अरे बन्दे !!!
सच्चे मज़हब को पहचाना कर
कभी तो अपने अन्दर झाँका कर
किस बात का इतना घमण्ड है तुझे
जो इतनी अकड़ में तू रहता है
अपने कागज के टुकड़ों पर
अपने मारबल के बने घरों पर
कभी तो गिनती कर लिया कर
कितने टुकड़े लेकर जायेगा साथ
कितने मारबल बाधेगा अपने पास
जितना भिखारी लेकर जायेगा
तुझे भी उतना ही मिलेगा
क्यों जीवन व्यर्थ में गवाता है
अरे बन्दे !!!
जो ले जा सके अपने साथ,
कोई ऐसी पूंजी इकठी किया कर
कभी तो अपने अन्दर झाँका कर
किस बात का इतना घमण्ड है तुझे
जो इतनी अकड़ में तू रहता है
अपनी उपाधियों पर,
जिन्हें पाकर तू ऊँचा उठ जाता
और बाकी सब छोटे हो जाते
पर उपाधियाँ पाकर,
तेरे दिल का विस्तार कहाँ हो पाता
वो तो जैसा है वैसा ही रह जाता
जो बनते है रिश्ते दिल की डोर से
वही आत्मा को तृप्त कर पाते हैं
तू बनाता है रिश्ते उपाधियाँ तौलकर
वो आत्मा तक कहाँ पहुँच पाते
अरे बन्दे !!!
उपाधियों के झांसे में आकार
तू अपनी आत्मा को भूल जाता है
सच क्या है जाना कर
कभी तो अपने अन्दर झाँका कर
किस बात का इतना घमण्ड है तुझे
जो इतनी अकड़ में तू रहता है
अपने देश पर,
कल भारत था आज बंगलादेश है
इस दुनिया में तू कहीं भी जाकर बसे
दुःख में रोता है सुख में हँसता है
भूख में बिलखता है प्रेम में नाचता है
इंसान है तू इंसान ही रहता है
फिर खुद को क्यों अलग करता है
जब अन्दर कुछ अलग है ही नहीं
सब गवा देगा तू
इस झूठे घमण्ड की खातिर
निगल जायेगी ज़िन्दगी यूही
मर जायेगा खाली हाथ
अब तो अपने अन्दर झाँक !
बन्दे अब तो अपने अन्दर झाँक !
Sunday, January 30, 2011
Monday, January 24, 2011
खुदा मेरे....
टुकड़ों टुकड़ों में क्यों मिलता है
कभी तो पूरा आकर मिल मुझसे
दुनिया मुझे बेगानी लगती है
दुनिया को लगती मैं पागल
ये कौन सा रहस्य है
जो तूने मेरे भीतर जड़ा
निडर अँधेरे में चलती हूँ
अकेले अकेले मुस्कुराती हूँ
ना बीता कल मुझे सताता है
ना आने वाले कल का बोध रहता है
कभी व्याकुल होकर रोती हूँ
कभी मस्ती से भरपूर झूमती हूँ
इतना नाचती हूँ कि
पांव में छाले पड़ जाते हैं
इतना रोती हूँ कि
आँखें सूज जाती हैं
किसी से जाकर मैं कहूं भी क्या
इस व्याकुलता में अजब सी मस्ती
इस मस्ती में चुभती व्याकुलता
चुपचाप ऐसे ही बैठी रहती हूँ रातों में
आँखों को मूँद घंटों तक
ना फ़िक्र होती है आईना देखने की
ना जरूरत लगती है काज़ल की
ये मेरा भ्रम है या हकीकत
तेरे मिलन की प्यास है जगी
या दुनिया से हुई थकान मुझे
कुछ तो आकर समझा दे
ये कौन सा रोग लगा मुझे
मैं होकर भी कहीं नहीं होती
नाचती हूँ पर मैं नहीं नाचती
बस नाच होता है मैं नहीं होती
लिखती हूँ पर मैं नहीं लिखती
बस शब्द मेरे होते है और भाव तेरे
लगता है मैं हूँ ही नहीं कहीं
हल्का सा दर्द भरा रहता है सीने में
कदम उठते हैं थम थमकर
कहने सुनने को कुछ नहीं रहा
सुनसान हुआ बाज़ार सारा
सारे बंधन छोड़कर
लगे तेरा बंधन प्यारा
कैसे कच्चे धागे से तूने
लिया अपनी ओर खीच मुझे
हर चीज बेमतलब हो गई
तेरी धुंधली सी झलक पाकर
क्या हूँ मैं तेरा अंग खुदा
जो बिलखती हूँ तुझसे बिछड़कर
ना होश रहे खुद का
ना आये ख़याल किसी दूसरे का
हर बात शुरू ख़त्म तुझसे
हर बात में जिक्र तेरा
गिर पडूँगी कहीं चित होकर
हो जायेगा ख़त्म अस्तित्त्व मेरा
अब इससे ज्यादा मत आजमा खुदा मेरे
टुकड़ों टुकड़ों में क्यों मिलता है
कभी तो पूरा आकर मिल मुझसे
कभी तो पूरा आकर मिल मुझसे
दुनिया मुझे बेगानी लगती है
दुनिया को लगती मैं पागल
ये कौन सा रहस्य है
जो तूने मेरे भीतर जड़ा
निडर अँधेरे में चलती हूँ
अकेले अकेले मुस्कुराती हूँ
ना बीता कल मुझे सताता है
ना आने वाले कल का बोध रहता है
कभी व्याकुल होकर रोती हूँ
कभी मस्ती से भरपूर झूमती हूँ
इतना नाचती हूँ कि
पांव में छाले पड़ जाते हैं
इतना रोती हूँ कि
आँखें सूज जाती हैं
किसी से जाकर मैं कहूं भी क्या
इस व्याकुलता में अजब सी मस्ती
इस मस्ती में चुभती व्याकुलता
चुपचाप ऐसे ही बैठी रहती हूँ रातों में
आँखों को मूँद घंटों तक
ना फ़िक्र होती है आईना देखने की
ना जरूरत लगती है काज़ल की
ये मेरा भ्रम है या हकीकत
तेरे मिलन की प्यास है जगी
या दुनिया से हुई थकान मुझे
कुछ तो आकर समझा दे
ये कौन सा रोग लगा मुझे
मैं होकर भी कहीं नहीं होती
नाचती हूँ पर मैं नहीं नाचती
बस नाच होता है मैं नहीं होती
लिखती हूँ पर मैं नहीं लिखती
बस शब्द मेरे होते है और भाव तेरे
लगता है मैं हूँ ही नहीं कहीं
हल्का सा दर्द भरा रहता है सीने में
कदम उठते हैं थम थमकर
कहने सुनने को कुछ नहीं रहा
सुनसान हुआ बाज़ार सारा
सारे बंधन छोड़कर
लगे तेरा बंधन प्यारा
कैसे कच्चे धागे से तूने
लिया अपनी ओर खीच मुझे
हर चीज बेमतलब हो गई
तेरी धुंधली सी झलक पाकर
क्या हूँ मैं तेरा अंग खुदा
जो बिलखती हूँ तुझसे बिछड़कर
ना होश रहे खुद का
ना आये ख़याल किसी दूसरे का
हर बात शुरू ख़त्म तुझसे
हर बात में जिक्र तेरा
गिर पडूँगी कहीं चित होकर
हो जायेगा ख़त्म अस्तित्त्व मेरा
अब इससे ज्यादा मत आजमा खुदा मेरे
टुकड़ों टुकड़ों में क्यों मिलता है
कभी तो पूरा आकर मिल मुझसे
Thursday, January 20, 2011
हाय ...दिल तेरी बेहयाई
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
इतनी बार ठोकर खाई
पर तुझे हया ना आई
कल किसी के लिए धड़कता था
आज किसी और के लिए आहें भरता है
फिर ग़ालिब की ग़ज़लों में डूबता है
फिर मैफिलों में तू तनहा सा खड़ा होता है
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
फिर नींद गवा दी तूने
सारी रात करवटें बदलतें बिताई
भूल गया सारे ज़ख्म पुराने
जब उसकी नज़र तेरी नज़र से लड़खड़ाई
इंतज़ार में गिनने लगा तारे तू
फिर चाँद में किसीकी सूरत दी दिखाई
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
किसीके आलिंगन में तूने
फिर से ईशवर की परछाई पाई
रखकर सर उसके सीने पर
सारी खुशबू अपनी धड़कनों में समाई
अब अगर विदा हो भी जाए वो और तू
तो भी तूने बस इस पल के लिए दी दुहाई
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
फिर ये मेरे दिल !!
तू वादों पर याकीन करने लगा
किसीकी मुस्कराहट पर मरने लगा
बजते हैं जो राग तेरे अन्दर
उन्हें मेरे चहरे से छलकाने लगा
जो चला गया उसका तुझे ग़म नहीं
जो हैं उसके साथ फिर तू सपने सजाने लगा
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
इतनी बार ठोकर खाई
पर तुझे हया ना आई
कल किसी के लिए धड़कता था
आज किसी और के लिए आहें भरता है
फिर ग़ालिब की ग़ज़लों में डूबता है
फिर मैफिलों में तू तनहा सा खड़ा होता है
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
फिर नींद गवा दी तूने
सारी रात करवटें बदलतें बिताई
भूल गया सारे ज़ख्म पुराने
जब उसकी नज़र तेरी नज़र से लड़खड़ाई
इंतज़ार में गिनने लगा तारे तू
फिर चाँद में किसीकी सूरत दी दिखाई
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
किसीके आलिंगन में तूने
फिर से ईशवर की परछाई पाई
रखकर सर उसके सीने पर
सारी खुशबू अपनी धड़कनों में समाई
अब अगर विदा हो भी जाए वो और तू
तो भी तूने बस इस पल के लिए दी दुहाई
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
फिर ये मेरे दिल !!
तू वादों पर याकीन करने लगा
किसीकी मुस्कराहट पर मरने लगा
बजते हैं जो राग तेरे अन्दर
उन्हें मेरे चहरे से छलकाने लगा
जो चला गया उसका तुझे ग़म नहीं
जो हैं उसके साथ फिर तू सपने सजाने लगा
हाय !! दिल तेरी बेहयाई
Tuesday, January 18, 2011
मौला
मेरा अपना क्या है मौला
सब तेरा ही है
तू जिस भी रूप में आयेगा,
मैं स्वीकार कर लूंगी
तू हंसी बनकर आयेगा,
तो खिलखिलाकर हंस लूँगी
तू आंसू बनकर आयेगा,
तो आँखों से बहने दूंगी
मैं क्यों जानूं ?
अपनी ख़ुशी की वजह
मैं क्यों पूछूँ ?
अपने गम का सबब
ये तन तेरा, ये मन तेरा
ये खुशी तेरी, ये गम भी तेरा
अब ना कोई सवाल हैं
ना किसी जवाब की उम्मीद
जब सबकुछ तेरा ही है मौला
तो ये सवाल भी तेरे , इनके जवाब भी तेरे
मैं तो कोरा कागज हूँ
तू अपने रंग भरता जा
अब तुझे कोई रोक टोक नहीं
जब तेरा मन हो चला आ
बहाकर ले चल कहीं भी
मैं संग तेरे चली आऊँगी
ना फ़िक्र है मरने की मौला
ना खोने को कुछ रहा
सब लुट भी जाये और मैं बन जाऊं फ़कीर
फिर भी क्यों डरूं ?
ये जान भी तेरी, ये शान भी तेरी
तू छीन ले सब, जब मर्जी हो तेरी
मिटा दे मेरी हस्ती, जब ना रहे जरुरत तेरी
मुस्कुराकर मिट जाऊँगी, तुझमें ही कहीं समा जाऊँगी
ये मुस्कराहट भी तेरी, ये मस्ती भी तेरी
जो चाहे कर ले मेरे मौला ,
अब तो हो चुकी हूँ तेरी
अब तो हो चुकी हूँ तेरी
सब तेरा ही है
तू जिस भी रूप में आयेगा,
मैं स्वीकार कर लूंगी
तू हंसी बनकर आयेगा,
तो खिलखिलाकर हंस लूँगी
तू आंसू बनकर आयेगा,
तो आँखों से बहने दूंगी
मैं क्यों जानूं ?
अपनी ख़ुशी की वजह
मैं क्यों पूछूँ ?
अपने गम का सबब
ये तन तेरा, ये मन तेरा
ये खुशी तेरी, ये गम भी तेरा
अब ना कोई सवाल हैं
ना किसी जवाब की उम्मीद
जब सबकुछ तेरा ही है मौला
तो ये सवाल भी तेरे , इनके जवाब भी तेरे
मैं तो कोरा कागज हूँ
तू अपने रंग भरता जा
अब तुझे कोई रोक टोक नहीं
जब तेरा मन हो चला आ
बहाकर ले चल कहीं भी
मैं संग तेरे चली आऊँगी
ना फ़िक्र है मरने की मौला
ना खोने को कुछ रहा
सब लुट भी जाये और मैं बन जाऊं फ़कीर
फिर भी क्यों डरूं ?
ये जान भी तेरी, ये शान भी तेरी
तू छीन ले सब, जब मर्जी हो तेरी
मिटा दे मेरी हस्ती, जब ना रहे जरुरत तेरी
मुस्कुराकर मिट जाऊँगी, तुझमें ही कहीं समा जाऊँगी
ये मुस्कराहट भी तेरी, ये मस्ती भी तेरी
जो चाहे कर ले मेरे मौला ,
अब तो हो चुकी हूँ तेरी
अब तो हो चुकी हूँ तेरी
Overflowing Happiness
Right now, I am feeling as if I never had any past and I directly landed to Oracle office from the sky.
Sometimes when happiness is overflowing. Past disappears and there are no worries about future. There is unknown masti in heart and you walk like a graceful dancer. You smile whoever cross your ways. If you are a software engineer and have those heights of happiness. Please go to washroom and dance. For me, washroom is best place to express overflowing happiness, overloaded sadness and uncontrollable anger. Thanks to Oracle for having clean and spacious Washroom. It has saved my job and my sanity is still intact in my colleague's eyes. People in my cubicle have become in habit of some of my abnormal activities such as I laugh and smile without much of interesting reasons. And sometimes I remain silent and don't look at them at all.
Ahha... feeling of happiness without any reasons as if I am flying with long wings. Body is weightless. A little fear, that it might leave me any moment and again I will be on the ground. But who cares... right now.flowers are showering on me from heaven. I am listening my heartbeat and breathe is relaxed. Eyes are twinkling like a child. Lips have no words but a mysterious smile. And I am feeling I have become really beautiful. I know this beautiful face. It glows only when existence decides to bless me with its abundant love and wants me to listen its songs and take a jump beyond routine chores. It feels as if I am carrying something very delicate thing in my womb. And every part of my body is dancing in silent rhythm with whole world. If there were no one in office I would have danced here and now in my cubicle.
How to hide this overflowing happiness?
Even my nails are doing khathak with keyboard and my hair are coming out of my ponytail. Ohhh God!! you have given me so much which I can't contain in me. Is there any way? I can show my gratefulness to you for this overflowing happiness. From where its flowing in my heart and where it is going from my heart. Will it enter into somebody else heart or it will go back to you and merge into you.
I am so small. My own happiness is just tiny and remains only on lips. But your blessings enters in every pore of my body, my soul and my heart. Sometimes I sit alone and laugh loudly and everything seems laughing with me...these tress, river and even rocks. People get scared seeing me sitting and laughing but they don't know what I am drinking. I drink your love and every time this love go one step deeper in me. Sometimes, I sing something which I never remember later and dance with my own shadow. My flatmates don't feel scared seeing me singing and dancing anymore. They wait when I would come back from this unknown state and cook dinner. Now, they have become in habit of my masti and tears.
God...you have given more than I deserve. My eyes are about to cry in your gratefulness. I am nobody and I have no great talent. I am not a true person. I lie so many times. I break heart also. But you give me unconditional love through so many sources. What can I say for your love? My love is limited only in few words. You take me beyond those boundaries without any of my efforts. Did you forgive all of my mistakes? Or those mistakes are not counted in your love. They are just like a sugar in tea.
So many times, I doubted you but you kept sending me gifts of love and compassion in so many different forms. Now, in this ultimate moment of happiness... What words I say to you. You are entering in me and I am losing my identity. Eyes are closing now. Mind is going out of words. I am here still I am not here. My body is at one place still I am feeling its in whirlpool. What else to say...allow me to close my eyes and drink this overflowing happiness.
Sometimes when happiness is overflowing. Past disappears and there are no worries about future. There is unknown masti in heart and you walk like a graceful dancer. You smile whoever cross your ways. If you are a software engineer and have those heights of happiness. Please go to washroom and dance. For me, washroom is best place to express overflowing happiness, overloaded sadness and uncontrollable anger. Thanks to Oracle for having clean and spacious Washroom. It has saved my job and my sanity is still intact in my colleague's eyes. People in my cubicle have become in habit of some of my abnormal activities such as I laugh and smile without much of interesting reasons. And sometimes I remain silent and don't look at them at all.
Ahha... feeling of happiness without any reasons as if I am flying with long wings. Body is weightless. A little fear, that it might leave me any moment and again I will be on the ground. But who cares... right now.flowers are showering on me from heaven. I am listening my heartbeat and breathe is relaxed. Eyes are twinkling like a child. Lips have no words but a mysterious smile. And I am feeling I have become really beautiful. I know this beautiful face. It glows only when existence decides to bless me with its abundant love and wants me to listen its songs and take a jump beyond routine chores. It feels as if I am carrying something very delicate thing in my womb. And every part of my body is dancing in silent rhythm with whole world. If there were no one in office I would have danced here and now in my cubicle.
How to hide this overflowing happiness?
Even my nails are doing khathak with keyboard and my hair are coming out of my ponytail. Ohhh God!! you have given me so much which I can't contain in me. Is there any way? I can show my gratefulness to you for this overflowing happiness. From where its flowing in my heart and where it is going from my heart. Will it enter into somebody else heart or it will go back to you and merge into you.
I am so small. My own happiness is just tiny and remains only on lips. But your blessings enters in every pore of my body, my soul and my heart. Sometimes I sit alone and laugh loudly and everything seems laughing with me...these tress, river and even rocks. People get scared seeing me sitting and laughing but they don't know what I am drinking. I drink your love and every time this love go one step deeper in me. Sometimes, I sing something which I never remember later and dance with my own shadow. My flatmates don't feel scared seeing me singing and dancing anymore. They wait when I would come back from this unknown state and cook dinner. Now, they have become in habit of my masti and tears.
God...you have given more than I deserve. My eyes are about to cry in your gratefulness. I am nobody and I have no great talent. I am not a true person. I lie so many times. I break heart also. But you give me unconditional love through so many sources. What can I say for your love? My love is limited only in few words. You take me beyond those boundaries without any of my efforts. Did you forgive all of my mistakes? Or those mistakes are not counted in your love. They are just like a sugar in tea.
So many times, I doubted you but you kept sending me gifts of love and compassion in so many different forms. Now, in this ultimate moment of happiness... What words I say to you. You are entering in me and I am losing my identity. Eyes are closing now. Mind is going out of words. I am here still I am not here. My body is at one place still I am feeling its in whirlpool. What else to say...allow me to close my eyes and drink this overflowing happiness.
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