Wednesday, July 13, 2011

इल्तज़ा

तेरे पास रहूँ या दूर कहीं !
कभी दुश्मन बनके, तुझे चोट न करू !

अगर मिले तू कभी अजनबी बनकर भी ,
मेरी पलकें शर्म से न झुकें !
इतनी पाक मुहब्बत रहे मेरी !

जो याद आये कभी तेरी, डबडबा जाए आँखें मेरी !
ख्वाब में भी, शिकायत न करू ज़माने से तेरी !
उस उंचाई तक लेकर जाय मुहब्बत तेरी !

तेरा होना न होना, किस्मत की बात है !
तेरे न होने से, कभी गवाऊं न खुद को मैं !

इतनी सी खुदा से इल्तज़ा है मेरी !

4 comments:

  1. oops....too much for me to take it....

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  2. yeh ishq nahi asaan,bas itna samajh lijyee!
    Ek aag ka darya hai, or Doob ker jana hai!
    :-)

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  3. Excellent !!! touched my heart !

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  4. Thanks Nids..heart to heart ..:-)
    Love...

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