ये सब तो चलता रहेगा
कभी ख़ुशी की धूप होगी
कभी दुःख का अँधेरा होगा
इन दोनों के बीच में,
पानी सा इंसान बहता रहेगा !
कभी लगालेगा कोई प्यार से गले
कभी कोई नफरत से झटक देगा
है नहीं कोई दुश्मन तुम्हारा यहाँ
पर दोस्तों की गिनती भी कम है
ये दोस्ती-दुश्मनी का सिलसिला,
बनता बिगड़ता रहेगा !
कभी जीत का सेहरा होगा
कभी हार का शिकवा होगा
न जीत का जश्न लम्बा होता है
न हार का दाग गहरा रहता है
ये कोई नई बात तो नहीं,
जीत-हार का खेल तो,
जब तक है चलता रहेगा !
तुम चाहों या न चाहों,
इन सबसे गुज़रना होगा
ये ज़िन्दगी न मेरी है
ये ज़िन्दगी न तेरी है
ये तो जैसी है बस वैसी है
उसे वैसे ही स्वीकार करना होगा !
Sunday, February 24, 2013
.....
अच्छा हुआ जो आपने,
ज़िन्दगी का हिसाब-किताब समझा दिया !
न रहा कोई खाता खुला,
क्या आपने हिसाब रखना सिखा दिया!
बहुत दिन के बाद,
जब पढ़ी ज़िन्दगी की किताब,
न लगी वो मेरी कहानी ,
क्या आपने पढ़ना सिखा दिया !
भूल कर भी न भूल पाऊँ खुद को,
क्या आपने याद रखना सिखा दिया
Thursday, February 21, 2013
Except You
Sometimes,
When I make silly mistakes
I fear to tell you.
You might come to know
How stupid I am?
but except you,with whom else?
I can share my silliness
And who else can trust in my intelligence,
That I will learn on my own with time
Sometimes,
When I feel like crying on tiny matters
I fear to look at you
you might think
I am not grown up yet
But except you, with whom else?
I can remain innocent like a child
And who else can accept my tears,
Just as a sign of delicate heart not a weakness
Sometimes,
When I become frustrated and angry on everyone around
I want to run away from you
You might think
I am not a loving girl anymore
But except you,with whom else?
I can show my dark self
And who else can allow me,
To experience every aspect of my being.
Sometimes,
When I feel totally hopeless and disappointed from life,
I don't want to expose myself
You might think
Even blessings of so many masters didn't bring any light to me
But except you,with whom else I can open unknown knots of my heart
And who else can understand,
Mysterious ways of soul journey
Dedicated to beautiful and lovely people in my life who are always there to accept and love me as I am :-)
Friday, February 15, 2013
क्या मैं भी कभी ?
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
तुम जैसी सरल थी
भूख लगी तो खा लिया
नीन्द आई तो सो लिया
ना फिकर थी बीती बातों की
ना आने बाला कल सताता था
दिन भर छोटी-छोटी बातों पर हंसती रहती थी
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
प्यार से इतनी भरी थी
जो भी पास आता था
उसे मुस्कुराकर गले लगा लेती थी
कोई पराया नहीं था मेरा, सब अपने थे
सब पे भरोसा था !
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
इतनी पाक थी
जब सोना, हीरा और मिटटी सब एक थे
जब मुझे बोलना नहीं आता था,
फिर भी आँखों से सब कह जाती थी
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
तुम जैसी नाज़ुक और नासमझ थी
जब मुझे कुछ नहीं आता था
न खाना, न बोलना , न चलना
पूरी तरहे दूसरों पर निर्भर थी
फिर भी डर नहीं था अन्दर,
कल कोई न रहा आस पास में तो कैसे करुँगी!
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या है मेरे पास तुम्हें देने को ?
कुछ भी तो ख़ास नहीं
पर जो तुम खज़ाना लेकर आए हो,
उसमे से मैंने कुछ हीरें चुरा लिए हैं
मैं भी अब सकून से तुम्हारी तरह सोती हूँ
मैं भी अब छोटी छोटी बातों पर हंसती हूँ
मैं भी अब कभी-कभी तुम्हारी ज़िन्दगी जी लेती हूँ
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
तुम जैसी सरल थी
भूख लगी तो खा लिया
नीन्द आई तो सो लिया
ना फिकर थी बीती बातों की
ना आने बाला कल सताता था
दिन भर छोटी-छोटी बातों पर हंसती रहती थी
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
प्यार से इतनी भरी थी
जो भी पास आता था
उसे मुस्कुराकर गले लगा लेती थी
कोई पराया नहीं था मेरा, सब अपने थे
सब पे भरोसा था !
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
इतनी पाक थी
जब सोना, हीरा और मिटटी सब एक थे
जब मुझे बोलना नहीं आता था,
फिर भी आँखों से सब कह जाती थी
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या मैं भी कभी ?
तुम जैसी नाज़ुक और नासमझ थी
जब मुझे कुछ नहीं आता था
न खाना, न बोलना , न चलना
पूरी तरहे दूसरों पर निर्भर थी
फिर भी डर नहीं था अन्दर,
कल कोई न रहा आस पास में तो कैसे करुँगी!
जब कभी तुम्हें देखती हूँ,
तो सोचती हूँ
क्या है मेरे पास तुम्हें देने को ?
कुछ भी तो ख़ास नहीं
पर जो तुम खज़ाना लेकर आए हो,
उसमे से मैंने कुछ हीरें चुरा लिए हैं
मैं भी अब सकून से तुम्हारी तरह सोती हूँ
मैं भी अब छोटी छोटी बातों पर हंसती हूँ
मैं भी अब कभी-कभी तुम्हारी ज़िन्दगी जी लेती हूँ
This poetry is dedicated to my sister-in-law's son Adrit who is 8 months old. English Translation for my dear friends who don't know how to read hindi :-)
Whenever I see you,
I think, some years back
Was I also simple like you
When I felt hungry, I ate
When I felt sleepy, I slept
There were no regrets of past
There were no worries for future
I kept laughing whole day on silly things
I kept laughing whole day on silly things
Whenever I see you,
I think, some years back
Was I also filled with love
Whoever came to me,
I smiled and hugged
Nobody was stranger to me
I trusted everyone
Whenever I see you,
I think, some years back
Was I also so pure
When gold, diamond and soil were all
I didn't know how to speak
Yet eyes said everything
Whenever I see you,
I think, some years back
Was I also delicate and Goofy
When I did not know anything
Neither eat nor speak, nor walk
I was completely dependent on others
Yet there was no fear?
What if? no one is around tomorrow!
What if? no one is around tomorrow!
Whenever I see you,
I think
What do I have to give you ?
Not anything special
But you've come with treasure,
I have stolen some diamonds from it
Now I sleep like you do
Now I laugh on silly things
Now sometimes I live your life
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