Tuesday, April 5, 2011

लम्हें

ज़िन्दगी लम्हों में मिलती है
हमारी तमन्नाओ की ग़ुलाम कहाँ होती है
चाहो तो समेट लो, चाहो तो फेंक दो

हमारा साथ कुछ लम्हों का हो सकता है
जन्म जन्मान्तर के सपनों में खोकर
इन्हें क्यों तबाह करता है

ये जो गुज़र रहे हैं कुछ लम्हें
तेरी बाँहों की छाओ में
वो एक उम्र से कम तो नहीं
बाँट लेते हैं अपने ख़ुशी ग़म
इससे ज्यादा क्या करना है पाकर

ये प्यार इश्वर का प्रसाद है
वो बेवजह बांटता रहता है
कभी थोड़ा , कभी ज्यादा
कभी इस रूप में, कभी उस रूप में
वो हमसे इजाज़त लेने नहीं आता

जितना मिला है उसका स्वाद ले लेते हैं
चल .. मेरी जान..इन लम्हों को जी भरकर जी लेते हैं

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