Thursday, May 19, 2011

मैं और मेरा मन

आज फिर मन मेरा,
मुझसे जीतने की जिद्द कर बैठा है
बीते हुए कल को,
खीचकर मेरे आज को तबाह कर रहा है

मैंने भी ठान ली है ,
जो चला गया, अच्छा या बुरा
वो दफ़न हो गया
मैं उसकी मज़ार पर फूल नहीं चड़ाऊगी
आज सारा कल हवा में उड़ा दिया मैंने
कल की सोच सोच मैं कहीं की न रही
आज उसे अपनी ज़िन्दगी से मिटा दिया मैंने
सुना मन तुने , बहुत हो चुकी है तेरी
अब है बारी मेरी

तू लाख जतन कर,
लेकर आ इसी जन्म का ही नहीं
सारे पिछले जन्मों का चिटठा
मैं तेरे साथ बहकर कहीं नहीं जाने वाली
तुझे जाना है, तो जा

मैं दूर से तमाशा देखुगी
तूने बहुत सताया है मुझे
बेमतलब की बातों में खूब उलझाया है मुझे
अब हो गए हैं तेरी मल्कियत के दिन पूरे
मैं एक नहीं सुनने वाली तेरी
आ नए नए बहानों से फुसला तू
पर मैं देख चुकी खाली है तेरी कटोरी
सुना मन तुने ,बहुत हो है चुकी तेरी
अब है बारी मेरी

तुझे क्या लगा था ?
मुझे लट्टू जैसा ज़िन्दगी भर नचाएगा
अंधेरों में भटकाएगा
मैं बेसहाय सी तेर साथ हो लुंगी
न रे ...ऐसा कैसे रे..
तू मैं नहीं है ,तू मेरा हिस्सा है
हिस्सा पूरे से जीत कैसे सकता है
तू सेवक है मेरा, मालिक मैं हूँ
सुना मन तुने ,बहुत हो चुकी है तेरी
अब है बारी मेरी
अब है बारी मेरी

2 comments: